शरद

ऋतू रानी बरस कर थक जाएं, तब ऋतू शरद की आती है,

शीतलहर उत्तर से उड़ती हुई, हिमालय का संदेशा लाती है ।

 

पहले सूरज से लड़ाई थी, देखकर उन्हें अपनी काया छुपाई थी,

अब वो घनिष्ट मित्र हैं, क्योंकि उनसे ही मिलता धूपामृत है।

 

कोई कहे गर्मी पीस कर निकाले पसीना और बारिश बरस कर लाये गन्दगी,

जाड़ा इन्हीं देता है जोड़ों का दर्द, करें ये किस मौसम की बंदगी ।

 

कभी ये गर्मी से बेहाल थे, कभी खाए बरखा के वार थे,

अब ठण्ड ठण्ड चिल्लाते हैं, बिन डरे ही कंपकंपाते हैं ।

 

याद है मुझे बचपन की बात, वो काली अँधेरी ठिठुरती ठण्ड की रात,

पूरा मोहल्ला बैठा था साथ, तापते हुए मंद लौ की तेज़ आंच ।

 

जो गर्मी के दिन घर घुस जाते थे, वो शरद की शाम ही बाहर आते थे,

ये शरद, नारियल सी निष्ठुर है, सब में प्रेम बढ़ाती है, त्योहारों की ऋत लाती है ।

 

गर्मी में लगे अति-प्यारी, वर्षा में बने नदिया की धारी,

शरद में रूह कंपकंपाती है, जब सलिल की बूँदें छू जाती हैं ।

 

कुछ किरणें पहले आती थीं, और हमको सुबह जगाती थीं,

वो अब भी सुबह आती हैं, पर संग मेरे कम्बल में दुबक जाती हैं ।

 

दोनों हाथों से दबे चाय के कुल्हड़, जमे शरीर को पिघलाते हैं,

जब ओढ़ दुशाला सुबह-सुबह, इसे नर्म धुप से तपाते हैं ।

 

लोग कहें शरद निष्ठुर है, रूखी है, तीव्र है, कठोर है,

पर इस सत्य से अबोध, खिले फूल चहुँ ओर हैं।

 

तुम मौसम हो बगिया के खिलने का,

तुम मौसम हो दिलों के मिलने का,

तुम न होगे तो वर्षा कैसे थमेगी,

बिन तुम्हारे बसंत कैसे जन्मेगी,

लाते रहना इस धरा पर हर्ष, नव-वर्ष, उत्कर्ष,

प्यारे शरद तुम आना हर वर्ष ।

 

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