कैसे कहूं की इश्क है ?
झलक दिखे जो उनकी, दिल मारे हिलोरे,
तड़पे ज़बान कुछ कहने को, पर हमें ज़माने की फिक्र है,
कैसे कहूं की इश्क है ?
आँखें हैं या काला जादू,
मेरे दिल पे इनका काबू,
धड़कन दिल की रोक दें ये,
ऐसा इनमें तिलिस्म है,
कैसे कहूं की इश्क है ?
जिस दिन तुमको देख न पाएं,
इन आँखों को नींद न आए,
मन फिरे बन निशाचर,
तुम्हें पाकर ही होगा तृप्त है,
कैसे कहूं की इश्क है ?
कल गुज़रीं थीं तुम मेरे पास से,
महक उठी थी हवा तुम्हारी सांस से,
सोचा पकड़ लूं हाथ तुम्हारा,
और कहूं, न छोड़ने का इसे संकल्प है,
कैसे कहूं की इश्क है ?
ज़बान पर लग जाता है ताला,
जब चले तुम्हारी नज़रों का भाला,
आँखों से पढ़ लो प्यार मेरा,
लबों से इज़हार में अभी कुछ वक़्त है,
कैसे कहूं की इश्क है ?
तुम बस मेरे सामने बैठो,
जितना चाहे उतना चहको,
रस-भरी वाणी तुम्हारी,
सुनकर भी कर्ण अतृप्त हैं,
कैसे कहूं की इश्क है ?
लिखी हैं चिठ्ठियाँ हमने भी प्यार में,
पर सब बैठी हें डाकिये के इंतज़ार में,
ये मुरझाये कागज़ भी चाहते हैं महकना,
जो मिले तुम्हारा स्पर्श है,
कैसे कहूं की इश्क है ?
जब मैंने तुमको पहली बार देखा,
तुम बन गयी मेरी हाथों की रेखा,
उपरवाले ने भी जोड़ा,
तेरे नसीब से मेरा नसीब है,
कैसे कहूं की इश्क है ?
देखा है हमने उनको चुपके से,
और उन्होंने हमें चोरी से,
क्या जो मेरे दिल में है,
उनके दिल में भी वही प्रीत है,
कैसे कहूं की इश्क है ?
जो वो कहें ‘ना’,
तो खुद को न मिटा दूं,
और उनकी ‘हाँ’ पर,
ख़ुशी से मर जाने का रिस्क है,
कैसे कहूं की इश्क है ?
तीर से ना तलवार से,
ना ज़माने की मार से,
बन्दा डरता है तो बस,
तुम्हारे इनकार से,
कहने को तो कह दूं, कि तुम से इश्क है,
पर डरता हूँ जवाब में ना हो, इनकार का ज़िक्र है,
कैसे कहूं की इश्क है ?