गुरु गोबिंद दोउ खडे
जैसा की हमारी परंपरा रही है की हम किसी भी कार्य की शुरुआत, अपने इष्टदेव का स्मरण कर आरम्भ करते हैं | तो आज पहले विचार की शुरुआत भी वहीँ से करते हैं :
” गुरु गोबिंद दोउ खडे काके लागूँ पाए
बलिहारी गुरु आपकी गोबिंद दियो बताये “
कबीरदास जी की यह पंक्ति आपने कई बार सुनी व पढ़ी होंगी | इसका अर्थ भी आपने यही पढ़ा होगा की गुरु और ईश्वर में, गुरु का महत्व ईश्वर से अधिक है, क्योंकि ईश्वर को पाने का रास्ता हमें गुरु ने ही बताया है | अतः कबीरदास जी का मानना यह है कि, दोनों में से हमें गुरु कि वंदना पहले करनी चाहिए |
परन्तु क्या हम ऐसा सोच सकते हैं कि कबीरदास जी जैसे विद्वान व्यक्ति सिर्फ इतना ही कहना चाहते होंगे | यहाँ पर गुरु का प्रयोग सांकेतिक तौर पर किया गया है | हमें हर उस व्यक्ति को ईश्वर जितना ही सम्मान देना चाहिए, जिसने किसी भी रूप में हमारी मदद की हो | वह हमारे लिए ईश्वर तुल्य होना चाहिए, अतः आदर का पात्र होना चाहिए | ईश्वर ने अपने सारे कार्यों को करने के लिए मानव रूप का सहारा लिया है | अतः मानव को ईश्वर का अंश मानकर, मदद करने वालों को भी उसी आदर व भक्ति का अधिकारी मानना चाहिए |
ईश्वर ने सारे कार्यों को करने के लिए मानव योनी का सहारा लिया है | मानव रूप में यह सारे कार्य कर, ईश्वर ने यही दर्शाया है की मानव वह प्राणी है जिसकी क्षमता असीमित है | मानव के लिए कोई भी कार्य असंभव या उसकी पहुँच से बाहर नहीं है | यही कबीरदास जी भी कहना चाहते हैं कि, मानव औरों कि सहायता कर सम्माननीय बन सकता है |
Management Funda : इन सब बातों का सार यही है कि मानव को अगर सही प्रेरणा, उत्तरदायित्व व मार्गदर्शन मिले तो कोई भी कार्य उसके लिए असंभव नहीं है | तो आप भी अपने जीवन में इन तीन चीज़ों को शामिल कर, अपने लक्ष्य को पूर्ण करें |