दिल कहे तो कविता करूं
दिमाग से कविता नहीं होती,
जो दिल कहे तो कविता करूं ॥
पुरवाई जब महकती हुई आए,
और इंद्र तड़ित-तलवार चलाए,
मेघों की गर्जन से मन थर्राय,
फिर बारिश मेरे आंगन आए,
सोंधी खुशबू से घर भर जाए,
बूंदों की टप-टप राग सुनाए,
जख्मी धरती पे जैसे मरहम लग जाए,
और हलधर ख़ुशी से झूमे गाए,
मेरा तन मन सब भीग जाए,
तो बारिश में भीगे दिल से कविता करूं ।
एक नज़ारा जो दिल को छू जाए,
कुछ वादियां जो नज़रों में समा जाए,
कभी जो चंचल हवा बालों से खेले,
या नदी की शीतल कल-कल भिगो जाए,
पर्वत के शिखर को कभी बादल घेरें,
और ठण्ड में सूरज गर्माहट लाए,
कभी जो शेर की दहाड़ें, हिरन की फुदकेँ और तितली की उड़ानें लुभाएं,
तो कभी घनेरे वनो में, ये दिल विचरण को जाए,
तो उस घुमक्कड़ दिल से कविता करूं ।
कभी कोई किसी पे करूणा बरसाए,
तो कहीं क्रोध की ज्वाला जल जाए,
जो कहीं दिखे प्रेम रास की मदहोशी,
तो कहीं देश-प्रेम सर चढ़ जाए,
कहीं राह चलते मिले कोई कहानी,
तो कहीं अहंकार आसमान से बढ़ जाए,
कभी रहे मन अकेलेपन के अंधकारों में,
और कभी प्रियजनों संग खिलखिलाए,
मन में तो उपजे अचरज भी,
एक चंचल मन रखे सब भाव समाए,
भाव-विभोर इस दिल से कविता करूं ।
कोई चेहरा कभी जो भा जाए,
एक अदा जो दाफतन याद आए,
कि दिल डूबे इश्क़ के समुन्दर में,
और किसी पे सब कुछ लुटा जाए,
कभी हो हल्की सी नोंकें-झोंकें,
तो कभी बाहों के हार में समा जाए,
कभी मिले खुशियाँ इश्क़ में,
तो कभी बस दुशवारियां हीं हाथ आए,
और कभी टूटे ये दिल इश्क़ में,
तो टूटे दिल से कविता करूं ।
दिमाग से कविता नहीं होती,
जो दिल कहे तो कविता करूं ॥